
अहंकार को छोड़ जगानी होगी आध्यात्मिक जागृति वर्ना सच्चाई से कोसों दूर होंगे आप
- Select a language for the TTS:
- Hindi Female
- Hindi Male
- Tamil Female
- Tamil Male
- Language selected: (auto detect) - HI
Play all audios:

इंसान यह भूल जाता है कि जब उसके अंदर घमंड पैदा हो जाता है, तो फिर उसके कदम उसे प्रभु से दूर संत राजिन्दर सिंह ले जाते हैं। बहुत बार प्रभु की खोज में लगे हुए लोगों के अंदर भी घमंड आ जाता है।
इंसान सोचने लगता है कि मैंने बहुत दान-पुण्य किया है, मैं बहुत से तीर्थ स्थानों पर गया हूं, मैं बाकायदगी से अपने धर्म स्थान पर जाता हूं, मैं औरों का ख्याल रखता हूं। महापुरुष बार-बार हमें यही
समझाते हैं कि हम ऐसी जिंदगी जिएं जो नम्रता से भरपूर हो। कुछ लोगों को अपने आप पर बड़ा घमंड होता है, उनको लगता है कि उनके कारण ही सबकुछ हो रहा है। वे सोचते हैं कि मैं बहुत अच्छा हूं, मैं बहुत
पढ़-लिख गया हूं, मैंने बहुत पैसे कमा लिए हैं, मेरा बहुत बोलबाला है। कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जो केवल यह नहीं समझते कि मैं बहुत अच्छा हूं बल्कि औरों को बताते भी फिरते हैं कि मैं बहुत अच्छा
हूं, मेरे पास बहुत सारे पैसे हैं, मैंने यह नई कार खरीदी है, मैं यहां सैर करके आया हूं, मेरे पास ये है, मेरे पास वो है। ज्यादातर लोग इन दो अवस्थाओं में ही जीते रहते हैं। अपने अहंकार को काबू
में न रखा जाए, तो फिर इंसान सच्चाई की जिंदगी नहीं जी पाता, क्योंकि जहां पर घमंड आ जाता है, वहां पर आदमी बढ़-चढ़ कर बातें करनी शुरू कर देता है, वह सच्चाई को भी बदल देता है। झूठी चीजों को भी
ऐसे दिखाएगा जैसे वह सच्ची हो। उसकी जिंदगी सच्चाई से दूर होनी शुरू हो जाती है। महापुरुष समझाते हैं कि इंसान अहंकार में सच्चाई से बहुत दूर चला जाता है। उसे अंदर से लगता है कि सब उसकी वाह-वाह
करें। किसी की मदद करने के बजाय वह इंसान अपनी बड़ाई में ही लगा रहता है। अहंकार के कारण ही इंसान को गुस्सा भी आता है। अगर एक अहंकारी आदमी आया और सामने वाला भी अहंकारी निकल आया, तो पहला अपनी
बात करेगा पर दूसरा उसकी बात सुनेगा नहीं। पहला सुनाना चाह रहा है, दूसरा सुन नहीं रहा, तो पहले के अंदर गुस्सा बढ ̧ता ही चला जाएगा। महापुरुष समझाते हैं कि हम यह न सोचें कि सारे गुण जरूरी नहीं
हैं। मूर्ति व मंदिर निर्माण के पीछे छिपा है एक पूरा विज्ञान: ओशो ऐसे पहचान करें असली और नकली इंसानों की: ओशो अधूरे और अनियमित विकास से हम अपनी मंजिल तक नहीं पहुंच सकते। हमें काम, क्रोध, लोभ,
मोह, और अहंकार को काबू में करना है और एक संतुलित व स्थिर जिंदगी जीनी है। वह स्थिरता हमें तब मिलती है जब हम अंदर की दुनिया में कदम उठाते हैं। स्थिरता हमें तब मिलती है जब हम प्रभु की नजदीकी
पाते हैं। सब कुछ हमारे अंदर है, लेकिन इंसान का ध्यान बाहर की ओर है। अगर हम अपना ध्यान अंदर की ओर करेंगे, तो हम असलियत को जान जाएंगे। हमारे अंदर आध्यात्मिक जागृति आ जाएगी और हमारे कदम तेजी से
प्रभु की ओर उठने शुरू हो जाएंगे। संत राजिंदर सिहं जी महाराज