
बंगाल चुनाव में शिवसेना किसका बिगाडे़गी गणित, tmc के लिए औवेसी फैक्टर की काट बनेगी ठाकरे की पार्टी?
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पश्चिम बंगाल की चुनावी राजनीति में अब शिवसेना भी जोर शोर से उतरने जा रही है। भाजपा विरोधी खेमे में खड़ी शिवसेना अपने नए सहयोगियों के लिए उसी तरह की स्थिति बनाना चाहती है जो एआईएमआईएम के
नेता... Himanshu Jha विशेष संवाददाता, हिन्दुस्तान, नई दिल्ली।Tue, 19 Jan 2021 08:32 AM Share Follow Us on __ पश्चिम बंगाल की चुनावी राजनीति में अब शिवसेना भी जोर शोर से उतरने जा रही है।
भाजपा विरोधी खेमे में खड़ी शिवसेना अपने नए सहयोगियों के लिए उसी तरह की स्थिति बनाना चाहती है जो एआईएमआईएम के नेता असासुद्दीन औवेसी के मैदान में उतरने से भाजपा के लिए बन सकती है। हालांकि जमीन
पर यह कितनी कारगर होगी, इसका आकलन चुनाव नतीजों पर ही होगा। भाजपा व शिवसेना ने लगभग तीन दशक तक एक दसरे के साथ राजनीति की, लेकिन अब दोनों एक दूसरे के खिलाफ हैं। शिवसेना महाराष्ट्र की जंग अन्य
राज्यों में ले जा रही है और जितना भी संभव हो रहा है भाजपा को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रही है। पश्चिम बंगाल में भाजपा अपने आपको सत्ता में काबिज करना चाहती है, तो वहीं अब शिवसेना बंगाल
चुनाव में भाजपा का खेल खराब करने में जुटी है। राज्य में भाजपा हिंदुत्व का मुद्दा जोर शोर से उठा रही है। अब शिवसेना भी इसी मुद्दे पर चुनाव मैदान में उतर रही है। शिवसेना के वरिष्ठ नेता संजय
राउत ने ट्वीट कर कहा है कि पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे से चर्चा के बाद शिवसेना ने बंगाल विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया है। हम बहुत जल्द कोलकाता आ रहे हैं। जय हिन्द, जय बांग्ला का नारा भी
संजय राउत ने दिया है। राउत का कहना है कि बंगाल में शिवसेना की इकाई कई सालों से काम कर रही है। वह पश्चिम बंगाल जाकर रिसर्च करेंगे और उद्धव ठाकरे मार्गदर्शन करेंगे। यह एक शुरुआत है। हम किसी को
हराने या मदद करने नहीं जा रहे। हम पार्टी का विस्तार करने जा रहे हैं। विभिन्न राज्यों की चुनावी राजनीति में इन दिनों एआईएमआईएम के नेता असासुद्दीन औवेसी की मौजूदगी की चर्चा अहम हैं। भाजपा
विरोधी दल इसे भाजपा की बी टीम का नाम दे रहे हैं। हालांकि भाजपा व औवेसी दोनों ही एक दूसरे के खिलाफ खड़े हैं। विपक्षी खेमे को लगता है कि औवेसी के चुनाव में उतरने से धर्म निरपेक्ष वोट बंटते
हैं। ऐसे में शिवसेना भी हिंदू वोटों कों बांट सकती है। हालांकि शिवसेना को पिछले बिहार विधानसभा चुनाव में नोटा से भी कम वोट मिले थे। कई सीटों पर तो उसके पास उम्मीदवार भी नहीं थे।