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एस्ट्राज़ेनेका कोविड वैक्सीन से ख़ून के थक्के बनने का 'कोई संकेत नहीं' 16 मार्च 2021 यूरोपीय संघ में दवाओं का नियमन करने वाली एजेंसी ने ये बात दोहराई है कि ऑक्सफोर्ड एस्ट्राज़ेनेका
कोविड वैक्सीन के कारण ख़ून के थक्के जमते हो, इस बात का 'कोई संकेत नहीं' मिला है. यूरोपीयन मेडिसिंस एजेंसी (ईएमए) की ये प्रतिक्रिया दुनिया के कई देशों में एस्ट्राज़ेनेका कोविड
वैक्सीन की लॉन्चिंग पर रोक लगाने के बाद आई है. ईएमए की चीफ़ एमर कुक का भरोसा इस वैक्सीन पर पूरी तरह से बरकरार है. उनका कहना है कि इस वैक्सीन के फ़ायदों का पलड़ा इसके जोखिमों पर भारी है. कुछ
लोगों में वैक्सीन दिए जाने के बाद ख़ून के थक्के बनने की समस्या देखी गई थी, जिसे लेकर जांच की जा रही है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने देशों से टीकाकरण अभियान न रोकने की अपील की है. विश्व
स्वास्थ्य संगठन के वैक्सीन सुरक्षा विशेषज्ञ मंगलवार को ऑक्सफोर्ड एस्ट्राज़ेनेका कोविड वैक्सीन की समीक्षा के लिए मिल रहे हैं. एस्ट्राज़ेनेका ने कहा है कि यूरोप में वैक्सीन की खुराक पाने वाले
एक करोड़ 70 लाख लोगों की जांच से पता चला कि 37 लोगों में ख़ून के थक्के बने थे. दूसरी तरफ़, यूरोपीयन मेडिसिंस एजेंसी का कहना है कि वैक्सीन की खुराक पाने वाले जिन लोगों में रक्त के थक्के बने,
उनकी संख्या इस समस्या से जूझ रहे आम लोगों से ज़्यादा नहीं है. एमर कुक ने कहा, "हम जानते हैं कि यूरोपीय संघ के हज़ारों लोगों में ख़ून के थक्के बनने की समस्या होती है. इसलिए हम ये पता
करना चाहते हैं कि ऐसा वैक्सीन की वजह से हुआ या फिर किसी अन्य कारण से. इस बीच जब जांच चल रही है, फिलहाल हमें अभी भी एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन के फ़ायदों पर पूरा भरोसा है कि ये कोविड-19 की बीमारी
को रोक रहा है." छोड़कर सबसे अधिक पढ़ी गईं आगे बढ़ें सबसे अधिक पढ़ी गईं * सीडीएस जनरल अनिल चौहान ने पाकिस्तान के साथ संघर्ष में भारत के लड़ाकू विमान गिराए जाने के सवाल पर दिया जवाब *
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लड़कियों की शादी के चलन को कैसे रोकें? समाप्त उम्मीद की जा रही है कि ईएमए की जांच के नतीजे गुरुवार को जारी कर दिए जाएंगे. यूरोप के देश क्या कर रहे हैं? जर्मनी, फ्रांस, इटली और स्पेन समेत कई
देशों ने अस्थाई तौर पर एस्ट्राज़ेनेका कोविड वैक्सीन के इस्तेमाल पर अस्थाई तौर से रोक लगा दी है. उनका कहना है कि खुराक पाने वाले कुछ लोगों में ख़ून के थक्के जमने की शिकायत सामने आने के बाद वे
वैक्सीन लॉन्च करने का काम अपने यहां रोक रहे हैं. खून में थक्के जमने की समस्या का अगर फौरन इलाज नहीं किया गया तो इससे मरीज की मौत हो सकती है. एस्ट्राज़ेनेका कोविड वैक्सीन के इस्तेमाल पर रोक
लगाने का फ़ैसला करने वाले देशों का कहना है कि उन्होंने ये कदम एहतियाती तौर पर उठाया है. जर्मनी के स्वास्थ्य मंत्री जेंस स्पाह्न ने बताया कि ये एक पेशेवर फ़ैसला था और वे देश की वैक्सीन
इंस्टीट्यूट की सिफारिशों पर अमल कर रहे थे. देश के वित्त मंत्री ओलाफ़ स्कॉल्ज़ ने कहा कि जर्मनी को उम्मीद है कि वैक्सीन का इस्तेमाल दोबारा से किया जा सकेगा. साथ ही उन्होंने ये उम्मीद भी जताई
कि एस्ट्राज़ेनेका कोविड वैक्सीन को लेकर आगे कैसे बढ़ा जाए, ईएमए इस पर जल्द फ़ैसला करेगा. जर्मनी में कोरोना संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. देश के कई मेडिकल एक्सपर्ट और राजनेताओं ने
अपील की है कि एस्ट्राज़ेनेका कोविड वैक्सीन का इस्तेमाल तब तक किया जाना चाहिए, जब तक कि वो असुरक्षित न साबित हो जाए. कोरोना वायरस: अमेरिका के आर्मी जनरल ने माना, वैक्सीन बांटने में हुई ग़लती
कोरोनाः बदले बेक़ाबू वायरस पर भारत में भी चिंता, ब्रिटेन में हड़कंप कोरोना महामारी से पीड़ित लोग हो रहे हैं डिप्रेशन के शिकार 'फ्री डेमोक्रेट' की एक महिला प्रवक्ता ने कहा कि इस
फ़ैसले से पूरे टीकाकरण अभियान को धक्का पहुंचा है. ग्रीन पार्टी के स्वास्थ्य विशेषज्ञ जानोश डाहमेन ने दलील दी कि सरकार 'उठाए जा सकने वाले जोखिम' के बारे में विस्तार से जानकारी
मुहैया करा सकती थी और वैक्सीन का इस्तेमाल जारी रखा जा सकता था. ऑस्ट्रिया समेत कुछ अन्य देशों ने एस्ट्राज़ेनेका कोविड वैक्सीन की कुछ चुनिंदा खेप के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है. जबकि बेल्जियम,
पोलैंड, चेक रिपब्लिक और यूक्रेन ने कहा है कि वे एस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन का इस्तेमाल जारी रखेंगे. कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों के कारण कई देशों ने अपने यहां पाबंदियों में और सख्ती बढ़ाई है.
यूरोप में वैक्सीन की सप्लाई में पहले से परेशानी देखी जा रही है. ऐसे में टीकाकरण अभियान को लेकर भी आशंकाएं जताई जा रही हैं. इटली में मेडिसिन अथॉरिटी के डायरेक्टर जनरल ने वैक्सीन के इस्तेमाल
पर रोक लगाने के फ़ैसले को 'राजनीतिक' करार दिया है. क्या कहते हैं जानकार? इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ पब्लिक हेल्थ के डॉ. सुरेश कुमार राठी कहते हैं, "हमारे शरीर में जब कोई भी चीज़
जाती है तो हो सकता है कि हमारा शरीर उसे स्वीकार कर ले या यह भी हो सकता है कि उसे स्वीकार नहीं करे. अगर शरीर ने उस बाहरी चीज़ को स्वीकार कर लिया है तो ठीक है, नहीं किया तो रिएक्शन होता है. तो
इसे आप चाहें एलर्जी कहिए या फिर री-एक्शन. ऐसा होना या ना होना हर एक के शरीर पर और उसकी क्षमता पर निर्भर करता है. आमतौर पर वैक्सीन के कोई साइड-इफ़ेक्ट नहीं होते हैं, लेकिन यह पर्सन टू पर्सन
निर्भर करता है." डॉ. राठी मानते हैं कि यह एक बहुत छोटी समस्या है. वो कहते हैं, "यूरोप में यह वैक्सीन अभी तक पचास लाख से अधिक लोगों को दी गई है, जिसमें से सिर्फ़ 30 लोगों में यह
परेशानी देखने को मिली है. इसे ऐसे समझिए कि किसी एक खाने को खाकर किसी को कुछ नहीं होता है और किसी को उसी खाने से फ़ूड-पॉइज़निंग हो जाती है." डॉ. राठी कहते हैं, "वैक्सीन के प्रभाव से
डरने की ज़रूरत नहीं है. सबसे बड़ी बात यह है कि कोई भी वैक्सीन सार्वजनिक तौर पर तभी बाज़ार में आती है या टीकाकरण के लिए मान्य होती है जब वो सारे टेस्ट पास कर ले. एस्ट्राज़ेनेका ने सभी
क्लीनिकल टेस्ट और बाक़ी के टेस्ट पास किये हैं, ऐसे में डरने की ज़रूरत नहीं है." हालांकि दिल्ली स्थित सफ़दरजंग अस्पताल में कम्यूनिटी मेडिसीन के प्रमुख जुगल किशोर मानते हैं कि इस बात को
अनदेखा तो नहीं किया जा सकता है. वो मानते हैं कि अगर इस तरह के मामले सामने आ रहे हैं तो बेशक इस पर ध्यान दिए जाने की ज़रूरत हैं. जो भी इस तरह के मामले आए हैं, उनका अध्ययन किये जाने की ज़रूरत
है ताकि सटीक निष्कर्ष निकाला जा सके. वहीं महाराष्ट्र कोविड टास्क फ़ोर्स के सदस्य डॉ. शशांक जोशी कहते हैं कि सबसे प्रमुख बात यह है कि ब्लड-क्लॉट किस वजह से हुआ है ये किसी को भी पुष्ट तौर पर
पता नहीं. और जितनी बड़ी संख्या में वहां कोरोना की वैक्सीन लगी है और ब्लड-क्लॉट के जो मामले आए हैं वो अनुपात में बेहद कम है. शशांक जोशी का कहना है कि ऐसा नहीं लगता है कि वैक्सीन का इससे कोई
सीधा संबंध है. वो कहते हैं, "मैं यह स्पष्ट तौर पर कहना चाहूंगा कि जो लोग वैक्सीन लेने के योग्य हैं, उन्हें वैक्सीन लेना चाहिए और इसमें बिल्कुल भी डरने जैसी कोई बात नहीं है." आईएचएस
हेल्थ इकोनॉमिक्स एंड हेल्थ पॉलिसी के प्रमुख डॉ. थॉमस ने भी ट्वीट करके लोगों से परेशान ना होने की अपील की है. उन्होंने ट्वीट किया है, "हर साल तक़रीबन एक लाख में से सौ लोगों में
थ्रोम्बोम्बोलिज़्म की शिकायत मिलती है और बुज़ुर्गों में यह ज़्यादा देखने को मिलता है. पीएआरसी/ईएमए जल्दी ही इस मसले को सुलझा लेंगे." कैसे पता चलता है कि कोई वैक्सीन सुरक्षित है और है तो
कितनी? वैक्सीन के लिए पहले लैब में सेफ्टी ट्रायल शुरू किए जाते हैं, जिसके तहत कोशिकाओं और जानवरों पर परीक्षण और टेस्ट किए जाते हैं. इसके बाद इंसानों पर अध्ययन होते हैं. लैब का सेफ्टी डेटा
ठीक रहता है तो वैज्ञानिक वैक्सीन के असर का पता लगाने के लिए आगे बढ़ सकते हैं. इसका मतलब फिर वॉलंटियर के बड़े समूह पर परीक्षण किए जाते हैं. आमतौर पर वैक्सीन आपको कोई बीमारी नहीं देती. बल्कि
आपके शरीर के इम्यून सिस्टम को उस संक्रमण की पहचान करना और उससे लड़ना सिखाती है, जिसके ख़िलाफ़ सुरक्षा देने के लिए उस वैक्सीन को तैयार किया गया है. वैक्सीन के बाद कुछ लोगों को हल्के लक्षण
झेलने पड़ सकते हैं. ये कोई बीमारी नहीं होती, बल्कि वैक्सीन के प्रति शरीर की प्रतिक्रिया होती है. 10 में से एक व्यक्ति को जो सामान्य रिएक्शन हो सकता है और आम तौर पर कुछ दिन में ठीक हो जाता
है, जैसे - बांह में दर्द होना, सरदर्द या बुख़ार होना, ठंड लगना, थकान होना, बीमार और कमज़ोर महसूस करना, सिर चकराना, मांसपेशियों में दर्द महसूस होना. (बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप
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