
अंग्रेजी पुलिस की उर्दू जबान कैसे समझें जनाब
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पुलिस हो रही डिजिटल, लेकिन मुगलिया भाषा नए पुलिसकर्मियों और पब्लिक के लिए बनी परेशानी का सबब
GORAKHPUR: डिजिटलीकरण के दौर में पुलिस भी तेजी से डिजिटल हो रही है। ऑनलाइन एफआईआर, एप्स की भरमार और थानों की ऑनलाइन निगरानी। लेकिन इन सबके बीच एक बड़ी बाधा बनकर आ रही है पुलिस की लैंग्वेज।
पुलिसिया कार्रवाई के दौरान इस्तेमाल होने वाले ये शब्द, न सिर्फ पब्लिक बल्कि पुलिस के लिए भी सिरदर्द से कम नहीं है। नई भर्ती के पुलिस कर्मचारियों के लिए यह लैंग्वेज किसी मुश्किल से कम नहीं
है। नाम न छापने की शर्त पर नए पुलिसकर्मी भी कहते हैं, प्लीज, चेंज द लैंग्वेज।
गौरतलब है कि पिछले कुछ अरसे में प्रदेश की पुलिस को लगातार हाइटेक बनाया जा रहा है। पुलिस थानों में कंप्यूटर लगने के बावजूद पुलिस की जनरल डायरी में पुरानी शब्दावली का इस्तेमाल किया जा रहा है।
कुछ पुराने पुलिस कर्मचारियों को छोड़ दिया जाए तो लिखापढ़ी के दौरान अधिकांश पुलिस कर्मचारी जीडी में गलती कर जाते हैं। इसलिए थानों पर पुराने जानकार मुंशी की जीडी पर ड्यूटी लगाई जाती है।
मैं थानाध्यक्ष अपने हमराही सिपाहियान के साथ क्षेत्र गश्त में मामूर था, कि जरिए मुखबिर सूचना मिलने पर एक नफर को असलहा के साथ गिरफ्तार किया। उसका हश्म हुलिया जैल है। गमे गिरफ्तारी खाने से
मुकीर है। हश्म ख्वाहिश खुराक दी जाएगी
यह तो महज एक बानगी है जिसका नमूना पुलिस की जीडी से लिया गया है। ऐसी शब्दावली और भाषा का यूपी पुलिस इस्तेमाल रोजाना करती है। पुलिस के इन शब्दों को समझने में पसीने छूट जाते हैं। कई बार तो ऐसा
भी होता है कि कचहरी में वकीलों को उर्दू की किताबें खंगालनी पड़ती हैं।
- शब्दों के चयन में लापरवाही का अभियुक्तों को लाभ मिलने की संभावना।
- डीजीपी मुख्यालय, अफसरों, थानों में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं।
पुलिस से जुड़े लोगों का कहना है कि पहले हेड मुहर्रिर उर्दू के अच्छे जानकार होते थे। धीरे-धीरे शब्दों का विलोपन हो रहा है। आने वाली पीढ़ी इसको अंग्रेजी में लिखे हैं। शब्दों से जीडी बंधी हुई
नहीं है। इसका भाव क्या होना चाहिए इस निर्भर करता है। कोर्ट कचहरी के प्राविधान और उनसे बंधे हुए शब्दों का इस्तेमाल किया जा रहे हैं। इन शब्दों से कम लिखापढ़ी करनी पड़ती है। कुछ लोगों ने बताया
कि पुलिस की जीडी में इस्तेमाल होने वाले तकरीबन पांच सौ शब्दों की सूची तैयार कराई गई थी। कुछ माह पूर्व डीजीपी हेडक्वार्टर से इन शब्दों की सूची जिला मुख्यालयों को भेजी गई। सूची में उर्दू,
अरबी, फारसी के शब्दों के अर्थ, उनके प्रयोग की जानकारी भी दी गई थी। सूची के साथ पत्र में कहा गया था कि शब्दों की सूची को थानों में चस्पा करा दी जाए। ताकि थानों के दफ्तर में इसका इस्तेमाल किया
जा सके। धीरे-धीरे इन शब्दों को चलन से बाहर करने की बात भी सामने आई थी। लेकिन इस मसले पर ठीक से अमल नहीं हो सका।
हिकमत अमली-केस की बारीकी से छानबीन करने को हिकमत अमली कहते हैं।
देहाती नालसी-किसी भी थाने में जीरो पर प्रथम सूचना पत्र को देहाती नालसी कहते हैं।
खारिजी-जब चालान की फाइनल रिपोर्ट में यह साबित होता है कि रिपोर्ट झूठी है, तो खारिजी हो जाती है। इसे ईआर लिखा जाता है। इसमें झूठी रिपोर्ट करने वाले पर आईपीसी के सेक्शन 182 और 211 के तहत
मुकदमा दर्ज होता है।
हवाले साना-संदर्भित प्रविष्टि इसका प्रयोग रोजनामचा में किया जाता है। जब भी पुलिस किसी कार्रवाई के लिए जाती है, तो उसकी रवानगी डालने को हवाले साना लिखा जाता है।
काफी हद तक पुलिस में आम बोलचाल की भाषा का इस्तेमाल किया जा रहा है। ऐसी कोई अनिवार्यता नहीं है कि पुराने शब्दों का इस्तेमाल किया जाए। नई भर्ती के पुलिस कर्मचारी सामान्य भाषा का इस्तेमाल कर
रहे हैं। शब्दों को बदलने के संबंध में कोई सरकुर्लर जारी हुआ था। इस संबंध में कोई जानकारी नहीं है। ऐसा कोई निर्देश मिला तो उनका अनुपालन कराया जाएगा।