गंगा बेल्ट पर कैंसर का साया

गंगा बेल्ट पर कैंसर का साया


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- साल दर साल बढ़ रही है पित्ताशय के कैंसर के मरीजों की संख्या - गंगा के पानी में बढ़ते प्रदूषण से खड़ी हो रही समस्या - साउथ के मुकाबले नार्थ इंडिया में हैं नौ गुना ज्यादा मामले ALLAHABAD:


जीवनदायिनी कही जाने वाली गंगा का पानी धीरे-धीरे मौत का सबब बनता जा रहा है। इसका कारण नदी में तेजी से बढ़ते प्रदूषण को माना जा रहा है। हालात यह हैं कि गंगा किनारे बसे शहरों में पित्ताशय के


कैंसर के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है, जो कि साउथ इंडिया के मुकाबले नौ गुना ज्यादा है। बढ़ते मामलों से गवर्नमेंट भी चिंतित है। कैंसर फैलने के सटीक कारणों का पता लगाने के लिए देशभर


में रिसर्च जारी है लेकिन अभी तक रिजल्ट सामने नहीं आ पाया है। एक लाख में नौ मरीज आते हैं सामने पित्ताशय की थैली के कैंसर को गॉल ब्लैडर कैंसर भी कहा जाता है। कुछ साल पहले तक इंडिया में इसके


मरीजों की संख्या काफी कम थी। लेकिन, समय बीतने के साथ मरीज बढ़े तो चिंताएं भी बढ़ीं। स्टडी में पाया गया कि साउथ इंडिया में अगर एक लाख लोगों में इस कैंसर का एक मरीज सामने आता है तो नार्थ


इंडिया के गंगा की बेल्ट वाले शहरों में नौ मरीज आइडेंटिफाइड हो रहे हैं। नौ गुने का अंतर होने की वजह से स्वास्थ्य एजेंसियों की निगाहें गंगा के पानी पर ठहर गई हैं। यूपी में वाराणसी के अलावा


इलाहाबाद में भी पित्ताशय की थैली के कैंसर के मरीजों की संख्या बढ़ी है। बढ़ते प्रदूषण में नहीं हो पाई तत्व की पहचान यह तो तय माना जा रहा है कि इस तरह के कैंसर के फैलने के पीछे गंगा का


प्रदूषित पानी जिम्मेदार है। फैक्ट्रियों द्वारा छोड़ी जा रही गंदगी में शामिल आर्सेनिक, फ्लोराइड सहित कई भारी मेटल गंगा के पानी को जहरीला बना रहे हैं। बावजूद इसके ऐसा कौन सा तत्व है जिसकी वजह


से कैंसर जैसी घातक बीमारी लोगों को अपनी चपेट में ले रही है। कैंसर स्पेशलिस्ट कहते हैं कि नेशनल लेवल पर इसकी रिसर्च चल रही है और रिजल्ट आते ही समस्या का निदान शुरू कर दिया जाएगा। इलाहाबाद में


हर साल ढाई हजार नए मरीज जानकारी के मुताबिक कमला नेहरू मेमोरियल हॉस्पिटल के रीजनल कैंसर सेंटर पर हर साल कैंसर के दस हजार नए मरीज आते हैं। इनमें से दो से ढाई हजार पित्त की थैली के कैंसर से


पीडि़त होते हैं। यह संख्या अपने आप में काफी ज्यादा है। जिससे इलाहाबाद यूपी में इस बीमारी के पीडि़तों की संख्या को लेकर सबसे ऊंचे पायदान पर पहुंच रहा है। कैंसर से पीडि़त कुल महिलाओं में क्8


फीसदी और पुरुषों में आठ फीसदी इस बीमारी से ग्रसित होते हैं। ग्राउंड वाटर है दिक्कत का सबब इलाहाबाद दोनों ओर से नदियों से घिरा हुआ है। गंगा और यमुना का यहां मिलन होता है जिससे यहां का ग्राउंड


वाटर लेवल दूसरे शहरों की अपेक्षा बेहतर है। एक्सप‌र्ट्स का कहना है कि नदियों के पानी की ऊपरी सरफेस को तो साफ कर दिया जाता है लेकिन काफी गहराई के पानी में शामिल भारी मेटल ग्राउंड वाटर के जरिए


हमारे पेट में पहुंचकर बीमारियां फैला रहे हैं। नेशनल काउंसिल ऑफ रेडिएशन प्रोटेक्शन एंड मेजरमेंट्स की स्टडी में पाया गया कि गंगा के पानी में न सिर्फ मेटल की मोटी परतें जमा हैं बल्कि इसमें कई


जानलेवा केमिकल्स पाए गए हैं, जिनसे कैंसर होने का खतरा बना रहता है। पहले स्टेज पर पहुंचने वाले दस फीसदी पित्त की थैली के कैंसर के मरीजों को शुरुआत में पता नहीं चल पाता है। थैली में बनने वाली


पथरी धीरे-धीरे कैंसर में तब्दील होने लगती है। महज दस फीसदी मरीज ही ऐसे होते हैं जिन्हें इस बीमारी का अंदाजा पहली स्टेज में हो जाता है और उनका इलाज समय रहते शुरू हो जाता है। बड़ी संख्या में


मरीज दूसरे और तीसरे स्टेज में डॉक्टर के पास पहुंचते हैं, जिनका इलाज करना आसान नहीं होता है। इलाहाबाद के अलावा वाराणसी, बिहार के वैशाली, पटना समेत मुर्शिदाबाद में भी पित्त की थैली के कैंसर के


मरीजों की संख्या अच्छी-खासी है। कैंसर के लक्षण - पेट के दाहिने कोने में तेज दर्द उठना - लगातार गैस बनने की शिकायत बने रहना - लीवर के नीचे गांठ बनना - उठने-बैठने में तकलीफ होना - पीलिया की


शिकायत हो जाना फैक्ट फाइल - यूपी, बिहार और बंगाल के इलाकों में रहने वाले लोगों में पित्त की थैली के कैंसर के मामले अधिक। - नेशनल काउंसिल ऑफ रेडिएशन प्रोटेक्शन एंड मेजरमेंट्स की स्टडी में


पाया गया कि गंगा के पानी में न सिर्फ मेटल की मोटी परत बल्कि कई जानलेवा केमिकल्स भी मौजूद हैं। - इलाहाबाद में हर साल कैंसर के दस हजार नए मरीज आते हैं। - इनमें से बीस से पच्चीस फीसदी पित्त की


थैली के कैंसर से पीडि़त होते हैं। - दस फीसदी मरीज ही पहली स्टेज पर डॉक्टर के पास पहुंचते हैं। - गंगा की बेल्ट में रहने वालों को पित्ताशय के अलावा किडनी, भोजन नली, प्रोस्टेट, लीवर, यूरिनरी


ब्लैडर और स्किन कैंसर के चांसेज अधिक होते हें। - साउथ के मुकाबले नार्थ इंडिया में पित्त के कैंसर के नौ गुना अधिक मरीज पाए जाते हैं। - इस बात पर देशभर में रिसर्च चल रही है कि गंगा के पानी में


ऐसा कौन सा मटेरियल है जिससे पित्त की थैली का कैंसर तेजी से बढ़ रहा है। इसका पता लगने के बाद निश्चित तौर पर निदान भी संभव होगा। फिलहाल ऐसे मरीजों की संख्या इलाहाबाद में अच्छी खासी है। डॉ।


बीके मिश्रा, कैंसर स्पेशलिस्ट, कृति कैंसर इंस्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर - केवल गंगा के पानी पर सवालिया निशान नहीं लगाया जा सकता है। इस एरिया के ग्राउंड वाटर में ऐसे कैंसर पनपने के लक्षण मौजूद


हैं। यही कारण है कि हर साल बीस से पच्चीस फीसदी नए मरीज पित्त की थैली के कैंसर के सामने आ जाते हैं। पदमश्री डॉ। बी पाल थेलियथ, कैंसर स्पेशलिस्ट, कमला नेहरू मेमोरियल हॉस्पिटल