Ugc: यूजीसी ने यूनिवर्सिटीज से कहा रद्द कर दिए फाइनल ईयर के एग्जाम, तो डिग्री नहीं मिलेगी

Ugc: यूजीसी ने यूनिवर्सिटीज से कहा रद्द कर दिए फाइनल ईयर के एग्जाम, तो डिग्री नहीं मिलेगी


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देश में तीन दशक बाद नई शिक्षा नीति को मंजूरी मिल गई है। उच्च शिक्षा में 3.5 करोड़ नई सीटों को जोड़ा जाएगा। वहीं Gross Enrolment Ratio को 2035 तक पचास फीसदी करने का लक्ष्य है। 2018 के आकड़ों


के अनुसार Gross Enrolment Ratio 26.3 प्रतिशत था। नई शिक्षा नीति के लागू होने के बाद छात्रों को आजादी होगी की अगर वे किसी कोर्स को बीच में छोड़कर दूसरे कोर्स में प्रवेश लेना चाहते हैं तो वे


पहले कोर्स से एक निश्चित समय का ब्रेक ले सकते हैं। पश्चिम बंगाल सरकार ने अदालत को यह भी कहा था कि राज्य नागरिकों के स्वास्थ्य की रक्षा के अपने संवैधानिक कर्तव्य से बाध्य है। वकील ने इस तथ्य


की ओर ध्यान दिलाया था कि दक्षिण बंगाल के जिले चक्रवात अम्फान से प्रभावित हुए हैं और कोरोना का खतरा भी बढ़ता जा रहा है। ऐसे में परीक्षा आयोजित करा पाना बेहद मुश्किल काम है। UGC ने दिशानिर्देश


जारी किए थे जिसमें कहा गया था कि विश्वविद्यालयों के लिए किसी भी पेन और पेपर, ऑनलाइन, या 30 सितंबर, 2020 तक दोनों के संयोजन का उपयोग करके अंतिम वर्ष की परीक्षा आयोजित करना अनिवार्य है। अब


अदालत के फैसले के बाद यह नियम सभी कॉलेज/यूनिवर्सिटी पर लागू होंगे। महाराष्ट्र, दिल्ली, पश्चिम बंगाल और ओडिशा ने उच्चतम न्यायालय से अनुरोध किया था कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) को


निर्देश दिया जाए कि वह चल रहे महामारी के दौरान लाखों विश्वविद्यालय के छात्रों पर अंतिम वर्ष की परीक्षा का दबाव न बनाए। अदालत ने अपना फैसला सुनाते हुए राज्‍यों को परीक्षा रद्द करने की अनुमति


तो दी है मगर कहा है कि बगैर परीक्षा के डिग्री नहीं दी जा सकती। आयोग का कहना है कि फाइनल ईयर के एग्‍जाम बेहद महत्‍वपूर्ण होते हैं। कॉलेज या यूनिवर्सिटी अपनी सुविधा के आधार पर ऑनलाइन या ऑफलाइन


किसी भी माध्‍यम में परीक्षा आयोजित कर सकते हैं। आयोग ने कहा है कि जो छात्र परीक्षा में भाग लेने में सक्षम नहीं होंगे, उन्हें परीक्षा के लिए एक और मौका दिया जाएगा जब महामारी की स्थिति


नियंत्रण में होगी। हालांकि, छात्रों ने आयोग के इस फैसले पर भी असहमति जताई है। शिव सेना की युवा शाखा, युवा सेना, शीर्ष अदालत में याचिकाकर्ताओं में से एक है और उसने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग


(यूजीसी) के निर्देश, COVID -19 महामारी के दौरान परीक्षा आयोजित कराने पर सवाल उठाया है। कलकत्ता विश्वविद्यालय 01 अक्टूबर और 18 अक्टूबर के बीच अपने संबद्ध कॉलेजों में पोस्‍ट ग्रेजुएट और


ग्रेजुएट प्रोग्राम के लिए फाइनल सेमेस्टर की परीक्षा आयोजित करेगा। विश्वविद्यालय के कुलपति सोनाली चक्रवर्ती बनर्जी ने एक संवाददाता सम्मेलन में इस बारे में जानकारी दी। शीर्ष अदालत ने कहा कि


राज्यों को छात्रों को प्रमोट करने के लिए 30 सितंबर तक परीक्षा आयोजित करनी चाहिए, और अगर किसी भी राज्य को लगता है कि वे परीक्षा आयोजित नहीं कर सकते हैं, तो उन्हें अपनी चिंताओं के साथ यूजीसी


से संपर्क करना होगा। गुवाहाटी विश्वविद्यालय (जीयू) ने घोषणा की है कि वह 22 सितंबर से 15 अक्टूबर के बीच बीए, बीएससी और बीकॉम अंतिम वर्ष (छठे सेमेस्टर) के लगभग 350 कॉलेजों के छात्रों के लिए


पेन और पेपर मोड के माध्यम से ऑफलाइन परीक्षा आयोजित करेगा। दिल्ली, पश्चिम बंगाल, पंजाब और तमिलनाडु के सम्मानित मुख्यमंत्रियों ने भी केंद्र सरकार को पत्र लिखकर UGC के दिशानिर्देशों को लागू न


करने की मांग की थी। ये वह राज्‍य हैं जहां कोरोना संक्रमण की हालत बेहद खराब है। अब कोर्ट के फैसले के बाद सभी राज्‍यों में परीक्षाएं अनिवार्य हो गई हैं। शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्यों को


छात्रों को प्रमोट करने के लिए 30 सितंबर तक परीक्षा आयोजित करनी चाहिए, और अगर किसी भी राज्य को लगता है कि वे परीक्षा आयोजित नहीं कर सकते हैं, तो उन्हें अपनी चिंताओं के साथ यूजीसी से संपर्क


करना होगा। देश में हो रही परीक्षाओं पर स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय ने निर्देश जारी करते हुए कहा है कि केवल उन्हीं परीक्षा केंद्रों पर एग्‍जाम कराने की अनुमति है जो कंटेनमेंट ज़ोन में नहीं आते हैं।


कंटेनमेंट ज़ोन से आ रहे परीक्षार्थियों और स्‍टाफ को एग्‍जाम सेंटर में एंट्री की अनुमति नहीं होगी। अक्टूबर के पहले सप्ताह में होने वाली अंतिम वर्ष की परीक्षाएं महीने के अंत तक परिणाम के साथ


आने के लिए टाल दी जाती हैं। 8 सितंबर को, मुंबई विश्वविद्यालय ने परीक्षाओं के संगठन के बारे में एक सर्कुलर जारी किया। आयोग ने कहा है कि जो छात्र परीक्षा में भाग लेने में सक्षम नहीं होंगे,


उन्हें परीक्षा के लिए एक और मौका दिया जाएगा जब महामारी की स्थिति नियंत्रण में होगी। हालांकि, छात्रों ने आयोग के इस फैसले पर भी असहमति जताई है। दिल्ली, पश्चिम बंगाल, पंजाब और तमिलनाडु के


सम्मानित मुख्यमंत्रियों ने भी केंद्र सरकार को पत्र लिखकर UGC के दिशानिर्देशों को लागू न करने की मांग की थी। ये वह राज्‍य हैं जहां कोरोना संक्रमण की हालत बेहद खराब है। अब कोर्ट के फैसले के


बाद सभी राज्‍यों में परीक्षाएं अनिवार्य हो गई हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विश्वविद्यालय स्नातक (अंडर ग्रेजुएट) और स्नातकोत्तर (पोस्ट ग्रेजुएट) कोर्सेज के फर्स्ट व सेकेंड ईयर स्टूडेंट्स को


अगले ईयर में प्रमोट करने को लेकर परीक्षा कराने के लिए स्वतंत्र है UGC ने दिशानिर्देश जारी किए थे जिसमें कहा गया था कि विश्वविद्यालयों के लिए किसी भी पेन और पेपर, ऑनलाइन, या 30 सितंबर, 2020


तक दोनों के संयोजन का उपयोग करके अंतिम वर्ष की परीक्षा आयोजित करना अनिवार्य है। अब अदालत के फैसले के बाद यह नियम सभी कॉलेज/यूनिवर्सिटी पर लागू होंगे। शिव सेना की युवा शाखा, युवा सेना, शीर्ष


अदालत में याचिकाकर्ताओं में से एक है और उसने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के निर्देश, COVID -19 महामारी के दौरान परीक्षा आयोजित कराने पर सवाल उठाया है। मामले में हस्तक्षेप के लिए देश


भर के 11 छात्रों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इसके बाद, 2 अलग-अलग याचिकाएँ, महाराष्ट्र राज्य की ओर से युवा सेना द्वारा और एक अन्य छात्र द्वारा एक अन्य याचिका भी दायर की गई थी।


अदालत में इस मामले की कई सुनवाई हुई। अदालत ने 28 अगस्‍त को मामले में फैसला सुनाया है। नई शिक्षा नीति के लागू होने के बाद छात्रों को आजादी होगी की अगर वे किसी कोर्स को बीच में छोड़कर दूसरे


कोर्स में प्रवेश लेना चाहते हैं तो वे पहले कोर्स से एक निश्चित समय का ब्रेक ले सकते हैं। देश में तीन दशक बाद नई शिक्षा नीति को मंजूरी मिल गई है। उच्च शिक्षा में 3.5 करोड़ नई सीटों को जोड़ा


जाएगा। वहीं Gross Enrolment Ratio को 2035 तक पचास फीसदी करने का लक्ष्य है। 2018 के आकड़ों के अनुसार Gross Enrolment Ratio 26.3 प्रतिशत था। स्नातक में प्रवेश लेने के बाद तीन साल पढ़ाई करना


अनिवार्य नहीं होगा। नई शिक्षा निति लागू होने के बाद स्नातक 3 से 4 साल तक होगा। इस बीच किसी भी तरह से अगर बीच में छात्र पढ़ाई छोड़ता है तो उसका साल खराब नही होगा। एक साल तक पढ़ाई करने वाले


छात्र को प्रमाणपत्र, दो साल पढ़ाई करने वाले को डिप्लोमा और कोर्स की पूरी अवधि करने वाले को डिग्री प्रदान की जाएगी। अभी लागू शिक्षा नीति के अनुसार किसी छात्र को शोध करने के लिए स्नातक, एमफिल


और उसके बाद पी.एचडी करना होता था। परंतु नई शिक्षा नीति के लागू होने के बाद जो छात्र शोध क्षेत्र में जाना चाहते हैं वे चार साल के डिग्री प्रोग्राम के बाद सीधे पीएचडी या डीफिल में प्रवेश ले


सकते हैं। वहीं जो छात्र नौकरी करना चाहते हैं उनके लिए वही डिग्री कोर्स तीन साल में पूरा हो जाएगा। वहीं शोध को बढ़ृावा देने के लिए और गुणवत्ता में सुधार के लिए नेशनल रिसर्च फाउनंडेशन की भी


स्थापना की जाएगी। दिल्ली, पश्चिम बंगाल, पंजाब और तमिलनाडु के सम्मानित मुख्यमंत्रियों ने भी केंद्र सरकार को पत्र लिखकर UGC के दिशानिर्देशों को लागू न करने की मांग की थी। ये वह राज्‍य हैं जहां


कोरोना संक्रमण की हालत बेहद खराब है। अब कोर्ट के फैसले के बाद सभी राज्‍यों में परीक्षाएं अनिवार्य हो गई हैं। कर्नाटक HC ने कहा कि, अंतिम परीक्षा देने वाले छात्रों के लिए यह महत्वपूर्ण है।


इसलिए दूसरी एजेंसियों को छात्रों के हित में कदम उठाना चाहिए। आपको उन केंद्रीय विश्वविद्यालयों का अध्ययन करना चाहिए जिन्होंने परीक्षा आयोजित की है। तमिलनाडु सरकार ने कोविड -19 संकट के कारण


परीक्षा आयोजित के बिना, अंतिम वर्ष के छात्रों को छोड़कर, बाकी सभी कॉलेज स्टूडेंट्स को पास कर अगली क्लास के लिए प्रमोट किया था। इन छात्रों को मई 2020 में होने वाली सेमेस्टर परीक्षा लिखने से


छूट दी गई थी। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एडप्पादी के पलानीस्वामी (Edappadi K Palaniswami) ने एक बयान में कहा, इन छात्रों यूजीसी और एआईसीटीई (UGC and AICTE) के दिशानिर्देशों के मुताबिक, मार्क्स


दिए गए हैं। तमिलनाडु में, टर्मिनल परीक्षा के लिए उपस्थित होने वाले छात्रों को छोड़कर, बीए, बीएससी, एमए, एमएससी, बीई / बीटेक, एमई / एमटेक, एमसीए और डिप्लोमा पाठ्यक्रमों के सभी छात्रों को अगले


शैक्षणिक वर्ष में प्रमोट किया गया। उन्‍होनें अदालत से कहा, "यूजीसी अधिनियम अनुसूची 7 में सूची 1 के प्रविष्टि 66 के माध्‍यम से UGC को परीक्षा के विषय में फैसला लेने का अधिकार है। मैं


आपका ध्यान धारा 12 पर आकर्षित करना चाहता हूं जो विश्वविद्यालय के अधिकार बताता है। 2003 का विनियमन 6 (1) नियम डिग्री देने के लिए न्यूनतम मानक के बारे में है जिसके अनुसार बगैर परीक्षा के आयोग


किसी भी छात्र को डिग्री नहीं दे सकता।" UGC का कहना है कि राज्य परीक्षाओं को स्थगित करने की मांग तो कर सकते हैं, मगर बगैर परीक्षा के किसी भी हाल में डिग्री नहीं दी जा सकती। आयोग


प्रोमोटेड छात्रों को डिग्री नहीं देगा, इसलिए परीक्षा कराना अनिवार्य है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे सही ठहराते हुए आयोग के पक्ष में अपना फैसला सुनाया। मामले में हस्तक्षेप के लिए देश भर के 11


छात्रों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इसके बाद, 2 अलग-अलग याचिकाएँ, महाराष्ट्र राज्य की ओर से युवा सेना द्वारा और एक अन्य छात्र द्वारा एक अन्य याचिका भी दायर की गई थी। अदालत में इस


मामले की कई सुनवाई हुई। अदालत ने 28 अगस्‍त को मामले में फैसला सुनाया है। अदालत में दलील पेश की गई थी कि चूंकि डिग्री यूजीसी द्वारा प्रदान की जाती है इसलिए यूजीसी को परीक्षाएं आयोजित कराने का


आदेश देने का अधिकार है। आपदा प्रबंधन अधिनियम के अनुसार, केंद्र सरकार इस मामले में राज्य सरकार को निर्देश दे सकती है। अदालत ने इस दलील को सही माना है। UGC ने दिशानिर्देश जारी किए थे जिसमें


कहा गया था कि विश्वविद्यालयों के लिए किसी भी पेन और पेपर, ऑनलाइन, या 30 सितंबर, 2020 तक दोनों के संयोजन का उपयोग करके अंतिम वर्ष की परीक्षा आयोजित करना अनिवार्य है। अब अदालत के फैसले के बाद


यह नियम सभी कॉलेज/यूनिवर्सिटी पर लागू होंगे। उत्तराखंड के हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय ने अंतिम सेमेस्टर की UG/ PG परीक्षाएं स्थगित कर दी हैं। परीक्षाएं 10 सितंबर से होनी थीं मगर


यूनिवर्सिटी ने पहले ही एग्‍जाम स्‍थगित कर दिए। अब जल्‍द ही नई डेट्स जारी की जाएंगी। पश्चिम बंगाल सरकार ने अदालत को यह भी कहा था कि राज्य नागरिकों के स्वास्थ्य की रक्षा के अपने संवैधानिक


कर्तव्य से बाध्य है। वकील ने इस तथ्य की ओर ध्यान दिलाया था कि दक्षिण बंगाल के जिले चक्रवात अम्फान से प्रभावित हुए हैं और कोरोना का खतरा भी बढ़ता जा रहा है। ऐसे में परीक्षा आयोजित करा पाना


बेहद मुश्किल काम है। ओडिशा सरकार ने COVID के बढ़ते मामलों के चलते यह कहा था कि छात्रों के स्‍वास्‍थ्‍य के मद्देनज़र, परीक्षाएं आयोजित करा पाना संभव नहीं है। राज्‍य सरकार ने अभी तक परीक्षा की


तिथि के संबंध में कोई जानकारी जारी नहीं की है। शिव सेना की युवा शाखा, युवा सेना, शीर्ष अदालत में याचिकाकर्ताओं में से एक है और उसने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के निर्देश, COVID -19


महामारी के दौरान परीक्षा आयोजित कराने पर सवाल उठाया है। UGC ने कहा है कि जारी की गई गाइडलाइंस के जरिए 'देश भर के छात्रों के शैक्षणिक भविष्य की रक्षा करना है जो कि उनके अंतिम वर्ष /


टर्मिनल सेमेस्टर की परीक्षा नहीं होने पर होगी, जबकि उनके स्वास्थ्य और सुरक्षा को ध्यान भी ध्यान में रखा गया है।'