
बिजली कंपनियों के ऑडिट मसले पर केजरीवाल सरकार को झटका
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दिल्ली हाई कोर्ट ने निजी क्षेत्र की तीन बिजली वितरण कंपनियों के खातों का ऑडिट नियंत्रक महालेखा परीक्षक (कैग) से कराने के दिल्ली सरकार के फैसले को आज रद्द कर दिया है। मुख्य न्यायाधीश जी
रोहिणी और न्यायमूर्ति आर एस एंडलॉ के पीठ ने कहा कि हमने बिजली वितरण कंपनियों की याचिकाओं को स्वीकार कर लिया है। पीठ ने इसके साथ ही स्पष्ट कर दिया कि ऑडिट की अब तक की प्रक्रिया और कैग की
मसविदा रिपोर्ट ‘अमान्य’ होगी। हाई कोर्ट के इस फैसले के बाद दिल्ली सरकार का इरादा है कि वह सुप्रीम कोर्ट में अपील करेगी। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने शुक्रवार को कहा कि हाई कोर्ट का आदेश
राष्ट्रीय राजधानी के लोगों के लिए अस्थायी झटका है और वह लोगों को सस्ती बिजली मुहैया कराने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने ट्वीट किया कि दिल्ली हाई कोर्ट का आदेश दिल्ली के लोगों के लिए अस्थायी
झटका है। दिल्ली सरकार जल्द ही सुप्रीम कोर्ट में एक अपील दायर करेगी। कांग्रेस और भाजपा ने भी दिल्ली सरकार को सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की सलाह दी है लेकिन आरोप लगाया है कि हाई कोर्ट में
ठीक से सरकार अपना पक्ष नहीं रख पाई, इसलिए ऐसा फैसला आया है। बिजली वितरण कंपनियों – टाटा पावर दिल्ली डिस्ट्रीब्यूशन लिमिटेड, बीएसईएस राजधानी पावर लिमिटेड और बीएसईएस यमुना लिमिटेड – ने आप
सरकार के सात जनवरी, 2014 के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें इन कंपनियों के खातों का ऑडिट कैग से कराने का आदेश दिया गया था। इन वितरण कंपनियों ने हाई कोर्ट के एकल न्यायाधीश के उस आदेश को भी
चुनौती दी थी, जिसमें उन्होंने कैग ऑडिट पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। इस न्यायाधीश ने 24 जनवरी 2014 के आदेश में बिजली वितरण कंपनियों से कहा था कि वे ‘ऑडिट की प्रक्रिया में कैग के साथ
पूर्ण सहयोग करें। बिजली वितरण कंपनियों की याचिकाओं को शुक्रवार को स्वीकार करते हुए अदालत ने यूनाइटेड आरडब्ल्यूएज ज्वाइंट एक्शन (ऊर्जा) नामक गैर सरकारी संगठन की वह जनहित याचिका भी खारिज कर दी
जिसके तहत डिस्कॉम के खातों का ऑडिट कैग से कराने की मांग की गई थी। इससे पहले, दिल्ली सरकार ने अदालत को बताया था कि यहां बिजली वितरण की निजी कंपनियों के खातों का कैग ऑडिट जरूरी है क्योंकि ये
कंपनियां एक सार्वजनिक काम करती हैं। सरकार ने कहा था कि वह बिजली वितरण कंपनियों के कामकाज को रोकने या उसमें हस्तक्षेप की कोशिश नहीं कर रही, बल्कि वह तो सिर्फ उन्हें सार्वजनिक लेखा परीक्षण के
दायरे में लाने की कोशिश कर रही है। सरकार का तर्क था कि इन कंपनियों में 49 फीसद की हिस्सेदारी दिल्ली सरकार की है और उसने इन कंपनियों में पूंजी भी लगाई है। मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी और
न्यायमूर्ति आर एस एंडलॉ के पीठ ने कहा कि हमने बिजली वितरण कंपनियों की याचिकाओं को स्वीकार कर लिया है। पीठ ने इसके साथ ही स्पष्ट कर दिया कि ऑडिट की अब तक की प्रक्रिया और कैग की मसविदा रिपोर्ट
‘अमान्य’ मानी जाएगी। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन ने कहा कि दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय जिसमें उन्होंने कहा है कि बिजली कंपनियों का कैग द्वारा ऑडिट नहीं हो सकता उसके खिलाफ
दिल्ली सरकार को सुप्रीम कोर्ट में काबिल वकीलों के द्वारा हाई कोर्ट के निर्णय के खिलाफ जल्द से जल्द अपील दायर करनी चाहिए। माकन ने कहा कि ऐसा लगता है कि दिल्ली हाई कोर्ट में दिल्ली सरकार की ओर
से मजबूत पक्ष नहीं रखा गया। माकन ने कहा कि ये वही केजरीवाल हैं, जो कांग्रेस की दिल्ली सरकार का मजाक उड़ाते हुए कहते थे कि दिल्ली सरकार यदि चाहे तो बिजली कंपनियों का ऑडिट करा सकती है।
उन्होंने कहा कि यदि दिल्ली सरकार जनता की भलाई के लिए बिजली कंपनियों पर नकेल कसती है तो हम इस मुद्दे पर दिल्ली सरकार का साथ देने के लिए तैयार है। वहीं प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सतीश उपाध्याय ने
कहा कि हाई कोर्ट के समक्ष यह मामला पावर डिस्कॉम को निजी कंपनी बताकर रखा गया और वहां जो फैसला हुआ है उसमें माननीय न्यायाधीशों ने पावर डिस्कॉम को निजी कंपनी मान कर राहत दी है। अगर दिल्ली सरकार
न्यायालय के समक्ष पावर डिस्कॉम को जनता के पैसे की संयुक्त भागीदारी के रूप में रखती तो निश्चित ही कैग या किसी अन्य एजंसी से ऑडिट की बात न्यायालय में मान्य हो सकती थी। लगातार ब्रेकिंग न्यूज,
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