
गंगा डाल्फिन: नदियां होंगी साफ तभी बचेगी जान
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राष्ट्रीय गंगा परिषद (एनजीसी) की हाल की बैठक में गंगा डाल्फिन को बचाने और उनकी आबादी बढ़ाने के लिए एक प्रस्ताव पर गंभीरता से चर्चा की गई। कानपुर में प्रधानमंत्री की अध्यक्ष में हुई इस बैठक
में नदियों से जुड़े शहर, घरों में जल निकासी समेत विभिन्न ऐसे मुद्दों पर चर्चा हुई, जिससे गंगा के जल की गुणवत्ता प्रभावित होती है। गंगा और सहायक नदियों में डाल्फिन की तेजी से कम हो रही संख्या
को पर्यावरण से जुड़ा बड़ा एक खतरा माना गया। गंगा के किनारे बसे पांच राज्य- उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड, बिहार और झारखंड के अलावा नौ केंद्रीय मंत्री एवं नीति आयोग के उपाध्यक्ष इस
परिषद के सदस्य हैं। इस परिषद की बैठक नियमानुसार हर साल होनी चाहिए, लेकिन 2016 के बाद अब जाकर बैठक हुई है। गंगा डाल्फिन के आस्तित्व को इस महान नदी के स्वास्थ्य से जोड़कर देखा जाता है। डाल्फिन
स्वच्छ व ताजे पानी में ही जीवित रह सकती हैं। एक दौर था, जब गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना और कर्णफुली-संगू नदी प्रणालियों में नेपाल, भारत और बांग्लादेश में ये जीव मिलते थे। लेकिन अब कई नदियों में
नहीं दिखते। वर्ष 2009 में गंगा डाल्फिन को भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया था और इसे लुप्तप्राय घोषित किया गया था। गंगा डाल्फिन अंधी होती हैं और अल्ट्रासोनिक तरंगों का इस्तेमाल करती
हैं। ये डाल्फिन गहरे पानी में रहा करती हैं। भारत के असम, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, झारखंड और बंगाल में इन जीवों का आस्तित्व रहा है। डाल्फिन लोगों के लिए कौतूहल का विषय रही
है। ज्यादातर लोग इसे मछली के रूप में जानते हैं, लेकिन डाल्फिन मछली नहीं है, बल्कि एक स्तनधारी जल जीव है। एक मनमौजी जीव होने के कारण लोग इसे देखना बहुत पसंद करते हैं। डाल्फिन का इंसानों के
प्रति विशेष व्यवहार शोध का विषय रहा है। माना जाता है कि धरती पर डाल्फिन का जन्म करीब दो करोड़ वर्ष पूर्व हुआ और डाल्फिन ने लाखों वर्ष पूर्व जल से जमीन पर बसने की कोशिश की, लेकिन धरती का
वातावरण डाल्फिन को रास नहीं आया और फिर उसने वापस पानी में ही बसने का मन बनाया। प्रकृति ने डाल्फिन के कंठ को अनोखा बनाया है, जिससे वह विभिन्न प्रकार की करीब 600 आवाजें निकाल सकती हैं। डाल्फिन
सीटी बजाने वाली एकमात्र जलीय जीव है। वह म्याऊं-म्याऊं भी कर सकती है तो मुर्गे की तरह आवाज भी निकाल सकती है। वर्ष 2009 में भारत सरकार ने डाल्फिन के व्यक्तित्व को स्वीकार करते हुए इन जीवों को
बंद रखते हुए इनके शो करने पर प्रतिबंध लगा दिया है। वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के मुताबिक, असम और उत्तर प्रदेश की नदियों में क्रमश: 962 और 1275 डाल्फिन पाई गईं। असम में बीते साल जनवरी से मार्च
के बीच सर्वे कराया गया। उत्तर प्रदेश में 2012 से 2015 के आंकड़ों का अध्ययन कर औसत निकाला गया है। असम की तीन नदियों में सर्वे कराया गया। ब्रह्मपुत्र में 877 डाल्फिन पाई गई हैं। इन डाल्फिन के
संरक्षण के लिए नदियों में बालू खनन रोक दिया गया है। लोगों की जागरूकता बढ़ने से डाल्फिन कुछ हद तक संरक्षित हो रही हैं। आंकड़ों से उत्साहित विशेषज्ञ भाष्कर दीक्षित का अनुमान है कि पूरी गणना के
बाद भारत में डाल्फिनों की संख्या 3500 से ज्यादा हो जाएगी। अब तक देश में 2000 से भी कम डाल्फिन बची होने का अनुमान था और उनकी संख्या लगातार कम होती जा रही थी।