
भगवान शिव का यह मंत्र अकाल मृत्यु को भी दे देता है मात, जानें- क्या है मान्यता
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महामृत्युंजय मंत्र के जाप से भगवान शिव को प्रसन्न किया जाता है। शास्त्रों अनुसार इस मंत्र के प्रभाव से इंसान मौत के मुंह में जाते जाते बच जाता है। इसलिए इसे अकाल मृत्यु मंत्र कहा गया है।
जहां इस मंत्र को विशेष फलदायी माना गया है तो वहीं इस मंत्र को जपते समय कुछ विशेष प्रकार की सावधानियां बरतनी चाहिए जिससे मंत्र का पूर्ण लाभ मिल सके और इससे आपको हानि न हो। अगर आप खुद इस मंत्र
का जाप न कर सकें तो आप किसी पंडित से जाप कराएं।
महामृत्युंजय मंत्र:ॐ हौं जूं स: ॐ भूर्भुव: स्व: ओम त्रयम्बकम् यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् भूर्भुव: स्वरोम जूं स:।
ध्यान देने वाली बात: जब भी आप इस मंत्र का जाप करें तो शुद्धता का विशेष रूप से ध्यान रखें। अत: मंत्र का उच्चारण एक दम सही होना चाहिए। शुद्धता की दृष्टि से ही कई लोग इसका जाप पंडित से करवाना
उचित मानते हैं। एक निश्चित संख्या में इसका जाप करें। मंत्र का उच्चारण होठों से बाहर नहीं आना चाहिए। जप करते समय धूप-दीप जलाएं। रुद्राक्ष की माला पर ही जप करें।
जब तक जप की संख्या पूर्ण न हो तब तक माला को गौमुखी में ही रखें। जप काल में शिवजी की प्रतिमा पास रखना अनिवार्य है। महामृत्युंजय मंत्र का जाप कुशा के आसन पर बैठकर ही करें। इस मंत्र का जाप
पूर्व दिशा की तरफ मुख करके करें। मंत्र का जाप करते समय ध्यान इधर उधर न भटकाएं।
महामृत्युंजय मंत्र की उत्पत्ति कैसे हुई? पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ऋषि मृकण्डु और उनकी पत्नी मरुद्मति ने पुत्र की प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने
उनको दर्शन दिए और उनकी मनोकामना पूर्ति के लिए दो विकल्प दिए। पहला- अल्पायु बुद्धिमान पुत्र दूसरा-दीर्घायु मंदबुद्धि पुत्र।
मार्कण्डेय की पुकार सुनकर देवों के देव महादेव वहां प्रकट हो गए। भगवान शिव के तीसरे नेत्र से महामृत्युंज मंत्र की उत्पत्ति हुई। भगवान शिव ने मार्कण्डेय को अमरता का वरदान दिया, जिसके बाद यमराज
वहां से यमलोक लौट गए।
1975 में जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी के निर्वाचन को अवैध घोषित किया, जिससे देश की राजनीति बदल गई। यह आजाद भारत में पहली बार हुआ था। राज नारायण ने चुनाव में धांधली का आरोप लगाया
था। फैसले के बाद इंदिरा गांधी ने आपातकाल लागू कर दिया, जो 21 महीने तक चला। जस्टिस सिन्हा को फैसले से पहले दबाव का सामना करना पड़ा।