Janmashtami 2019: जानें क्या है पूजा विधि और कैसे करें व्रत

Janmashtami 2019: जानें क्या है पूजा विधि और कैसे करें व्रत


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JANMASHTAMI 2019 : कृष्ण शब्द ही अपने आप में जीवन का अत्यंत गंभीर रहस्य समेटे है। इस शब्द में जहां ‘क' काम सूचक है, वहीं ‘कृ' श्रेष्ठ शक्ति का प्रतीक है, ‘ष' षोडश कलाओं...


सृष्टि वाराणसी (उत्तर प्रदेश)Tue, 20 Aug 2019 11:43 AM Share Follow Us on __ Janmashtami 2019 : कृष्ण शब्द ही अपने आप में जीवन का अत्यंत गंभीर रहस्य समेटे है। इस शब्द में जहां ‘क' काम


सूचक है, वहीं ‘कृ' श्रेष्ठ शक्ति का प्रतीक है, ‘ष' षोडश कलाओं का रहस्य समेटे है और ‘ण' निर्माण का बोध कराने में समर्थ है। इस प्रकार कृष्ण शब्द का तात्पर्य है कि जो सामर्थ्य


पूर्वक पूर्ण भोग व मोक्ष दोनों की समान गति बनाए रखे। बीज स्वरूप में भगवान श्री कृष्ण को ‘क्लीं' स्वरूप माना गया है। इसीलिए यदि इस सिद्ध पर्व पर साधक अपने जीवन के पक्ष से सम्बंधित कोई भी


साधना करता है, तो वह निश्चय ही सौ गुना अधिक तीव्र एवं प्रभावशाली सिद्ध होती है। भगवान श्रीकृष्ण कुशल तंत्रवेत्ता और साधक भी थे, जिन्होंने अपने गुरु संदीपनी के आश्रम में अनेक साधनाएं सीखी


थीं। जन्माष्टमी के दिन श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप की सेवा और पूजा करने से सुख-सौभाग्य में वृद्धि होती है और पापों का नाश हो जाता है। भगवान श्रीकृष्ण का बाल रूप हर एक के हृदय में प्रेम और


वात्सल्य का भाव जाग्रत करता है। श्रीकृष्ण का अवतार कुछ विशेष लीलाओं के लिए ही हुआ था। पूजन विधान जन्माष्टमी के दिन व्रती सुबह में स्नानादि कर ब्रह्मा आदि पंच देवों को नमस्कार करके पूर्व या


उत्तर मुख होकर आसन ग्रहण करें। हाथ में जल, गंध, पुष्प लेकर व्रत का संकल्प इस मंत्र का उच्चारण करते हुए लें- ‘मम अखिल पापप्रशमनपूर्वक सर्वाभीष्ट सिद्धये श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत


करिष्ये।' इसके बाद बाल रूप श्रीकृष्ण की पूजा करें। गृहस्थों को श्रीकृष्ण का शृंगार कर विधिवत पूजा करनी चाहिए। बाल गोपाल को झूले में झुलाएं। प्रात: पूजन के बाद दोपहर को राहु, केतु, क्रूर


ग्रहों की शांति के लिए काले तिल मिश्रित जल से स्नान करें। इससे उनका कुप्रभाव कम होता है।  इस मंत्र का करें जाप सायंकाल भगवान को पुष्पांजलि अर्पित करते हुए इस मंत्र का उच्चारण करें- ‘धर्माय


धर्मपतये धर्मेश्वराय धर्मसम्भवाय श्री गोविन्दाय नमो नम:।' इसके बाद चंद्रमा के उदय होने पर दूध मिश्रित जल से चंद्रमा को अर्घ्य देते समय इस मंत्र का उच्चारण करें- ‘ज्योत्सनापते नमस्तुभ्यं


नमस्ते ज्योतिषामपते:! नमस्ते रोहिणिकांतं अघ्र्यं मे प्रतिग्रह्यताम!' रात्रि में कृष्ण जन्म से पूर्व कृष्ण स्तोत्र, भजन, मंत्र- ‘ऊं क्रीं कृष्णाय नम:' का जप आदि कर प्रसन्नतापूर्वक


आरती करें।