अस्पताल में महीनेभर सेवा करो;नाबालिग को ब्लैकमेल करने के आरोपी को अनोखी सजा दे hc ने रद्द की fir

अस्पताल में महीनेभर सेवा करो;नाबालिग को ब्लैकमेल करने के आरोपी को अनोखी सजा दे hc ने रद्द की fir


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अदालत ने कहा कि शख्स पर लगे आरोप बिना किसी संदेह के बेहद गंभीर हैं, जिसमें नाबालिग लड़की के उत्पीड़न और शोषण के आरोप भी शामिल हैं। कोर्ट ने आगे कहा कि ये करतूतें सोशल मीडिया युग की कालिख को


उजागर करती हैं दिल्ली हाई कोर्ट ने पॉक्सो अपराध के तहत दोषी पाए गए शख्स को अनोखी सजा सुनाते हुए FIR को रद्द कर दिया है। अदालत ने आरोपी को सरकारी अस्पताल में सेवा करने और युद्ध हताहतों के लिए


बने सैनिक कल्याण कोष में 50 हजार रुपए जमा करने का आदेश दिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने उसके खिलाफ दर्ज FIR को भी रद्द कर दिया है। अदालत ने कहा कि सामान्यतः ऐसे आरोप लगे होने पर आरोपी पर दर्ज


एफआईआर को रद्द नहीं किया जा सकता, लेकिन पीड़िता की निजता और सम्मान की चिंता करेत हुए कोर्ट यह आदेश दे रही है। यह मामला स्कूल के एक सीनियर छात्र द्वारा एक नाबालिग छात्रा को ब्लैकमेल करते हुए


उससे पैसे की मांग करने और ऐसा ना करने पर उसकी निजी तस्वीरें वायरल करने की कथित धमकी देने से जुड़ा है। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने लड़की को धमकी देने वाले आरोपी के व्यवहार को अस्वीकार्य बताया और


कहा कि इस तरह का व्यवहार डिजिटल प्लेटफॉर्म के घोर दुरुपयोग और सहमति व व्यक्तिगत गरिमा के भयंकर उल्लंघन को बताता है। अदालत ने याचिकाकर्ता के उस बयान को भी रिकॉर्ड में लिया, जिसमें उसने बताया


कि पीड़िता की कोई भी निजी तस्वीर अब उसके पास नहीं है। अदालत ने इस मामले में 27 मई को दिए अपने फैसले में कहा, 'पीड़िता यानी शिकायतकर्ता ने इस आपराधिक मामले के लंबित रहने से उस पर पड़ने


वाले सामाजिक और भावनात्मक बोझ और शादी समेत भविष्य में पड़ने वाले अन्य दुष्प्रभावों के बारे में बताते हुए, इस मामले को यहीं खत्म कर आगे बढ़ने की इच्छा जताई है।' जिसके बाद अदालत ने इस


मामले में दर्ज एफआईआर को रद्द करते हुए आरोपी याचिकाकर्ता शख्स को आत्मचिंतन के लिए सामुदायिक सेवा करने का निर्देश दिया। साथ ही उस पर 50,000 रुपए का जुर्माना भी लगाते हुए उसे सैन्यकर्मियों के


कल्याण कोष में जमा करने को भी कहा। अदालत ने याचिकाकर्ता को जून महीने के दौरान लोक नायक जय प्रकाश नारायण अस्पताल में एक महीने तक सामुदायिक सेवा करने तथा इसके बाद रजिस्टर के जरिए इसकी पुष्टि


करते हुए प्रमाण पत्र दाखिल करने का आदेश दिया। इसके साथ ही अदालत ने सामुदायिक सेवा के दौरान आरोपी के गायब रहने या किसी भी प्रकार की चूक या दुर्व्यवहार करने पर चिकित्सा अधीक्षक को तत्काल


संबंधित पुलिस अधिकारी को सूचित करने का निर्देश दिया, ताकि मामले को उचित आदेशों के लिए अदालत के सामने रखा जा सके, जिसमें रद्द की गई एफआईआर को फिर से जीवित करना भी शामिल है। मामले का आरोपी एक


लड़का है, जो शिकायतकर्ता लड़की के स्कूल में वरिष्ठ छात्र था, ने साल 2017 में नाबालिग की निजी तस्वीरें यह कहकर मांगी थीं कि रोमांटिक रिलेशनशिप्स में इस तरह फोटोज का लेन-देन सामान्य बात है।


हालांकि बाद में बात ना बनने पर दोनों ने एक-दूसरे से बातचीत बंद कर दी थी। हालांकि फरवरी 2018 में आरोपी सीनियर छात्र ने शिकायतकर्ता को ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया और उससे 6,000 रुपए की मांग की


और पैसे न देने पर उसकी तस्वीरों को ऑनलाइन शेयर करते हुए वायरल करने की धमकी दी। जिसके बाद शिकायतकर्ता ने दबाव में कई बार उसे पैसों का भुगतान करने का दावा भी किया। इसके बाद बात यहीं खत्म नहीं


हुई, अप्रैल 2018 में याचिकाकर्ता के एक दोस्त ने भी शिकायतकर्ता को ब्लैकमेल किया, जिसके बाद उसने डर के मारे उसे भुगतान कर दिया। याचिकाकर्ता के खिलाफ साल 2019 में महिला की गरिमा को ठेस


पहुंचाने के इरादे से उस पर हमला करने या आपराधिक बल का इस्तेमाल करने, आपराधिक धमकी देने और आईपीसी के तहत अन्य अपराधों के अलावा यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम के तहत यौन


उत्पीड़न के अपराध के लिए एफआईआर दर्ज की गई थी। अदालत ने कहा कि शख्स पर लगे आरोप बिना किसी संदेह के बेहद गंभीर हैं, जिसमें नाबालिग लड़की के उत्पीड़न और शोषण के आरोप भी शामिल हैं। कोर्ट ने आगे


कहा कि ये करतूतें सोशल मीडिया युग की कालिख को उजागर करती हैं। आगे अदालत ने कहा कि सामान्यतः ऐसे आरोप लगे होने पर आरोपी पर दर्ज एफआईआर को रद्द नहीं किया जा सकता, लेकिन पीड़िता की निजता और


सम्मान के अधिकार को देखते हुए कोर्ट दर्ज FIR को रद्द करने का आदेश देती है।