अशोक सिंघल पंचतत्व में विलीन

अशोक सिंघल पंचतत्व में विलीन


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विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) के नेता अशोक सिंघल बुधवार को पंचतत्त्व में विलीन हो गए। उनको मुखाग्नि दिए जाने के समय पूरा निगम बोध घाट लोगों से भरा हुआ था और ‘जय श्रीराम’ के नारे लग रहे थे।...


विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) के नेता अशोक सिंघल बुधवार को पंचतत्त्व में विलीन हो गए। उनको मुखाग्नि दिए जाने के समय पूरा निगम बोध घाट लोगों से भरा हुआ था और ‘जय श्रीराम’ के नारे लग रहे थे।


विहिप के वरिष्ठ नेताओं ने उनकी याद में अयोध्या में विशाल राम मंदिर निर्माण की मांग दोहराई। विहिप नेताओं ने कहा कि सिंघल को सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि 1992 में ध्वंस होने के दिन तक जिस जगह


पर बाबरी मस्जिद थी, वहां भव्य राम मंदिर का निर्माण किया जाए। विहिप नेता प्रवीण तोगड़िया ने कहा, ‘हिन्दू हृदय सम्राट और राम मंदिर आन्दोलन के महानायक ने अयोध्या में भव्य राम मंदिर के दर्शन के


बिना ही शरीर छोड़ दिया। संसद में कानून बना कर भव्य राम मंदिर का निर्माण ही अशोक सिंघल के स्वप्न को पूरा करेगा।’ यही बात केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कही। प्रसाद ने मंदिर मामले में अदालत


में ‘राम लला’ का प्रतिनिधित्व किया था। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा, ‘अशोक सिंघल की कर्तव्यनिष्ठा और हिन्दू समाज के प्रति उनका समर्पण सदैव याद रहेगा।’ इससे पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के


झण्डेवालान स्थित कार्यालय में हजारों लोग सिंघल का अंतिम दर्शन करने पहुंचे। इनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल थे। उनका अंतिम दर्शन करने वालों में लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन,


गृहमंत्री राजनाथ सिंह, वित्तमंत्री अरुण जेटली, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, कृषि मंत्री राधामोहन सिंह, रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर शामिल थे। इनके साथ केंद्रीय मंत्री उमा भारती, धर्मेन्द्र


प्रधान, जनरल वी.के. सिंह, मनोज सिन्हा, स्मृति ईरानी, कलराज मिश्र, श्रीपद नाईक, प्रकाश जावेडकर, कृष्णपाल गुर्जर, राज्यवर्धन भी उनके अंतिम दर्शन के लिए पहुंचे। नेपाल और भूटान के राजदूत


दीपकुमार उपाध्याय तथा वी.एम.नामजीन के साथ अनेक राज्यों के राज्यपालों और मुख्यमंत्रियों ने भी सिंघल के अंतिम दर्शन किए। विहिप ने बताया कि आरएसएस मुख्यालय से जब उनकी अन्तिम यात्रा निकली तो


रास्ते में उनके समर्थकों ने पुष्प वर्षा की। सिंघल उस जन अभियान के मुख्य शिल्पकारों में से एक थे जिसका खात्मा 6 दिसंबर 1992 को 16वीं सदी की बाबरी मस्जिद के विध्वंस के साथ हुआ था। इसके बाद देश


में बड़े स्तर पर सांप्रदायिक दंगे हुए थे।