
जानिए ‘लेमन मैन’ के नाम से मशहूर यूपी के इस शख्स ने कैसे बदली किस्मत
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नींबू की बावानी से प्रति एकड़ पांच लाख तक कमाने वाला यह शख्स आज दूसरे राज्यों में भी प्रशिक्षण दे रहा है एक बड़ी कंपनी में नौकरी छोड़कर बागवानी में जुटे आनंद मिश्रा अब लेमन मैन के नाम से जाने
जाते हैं। खुद नीबू की बागवानी करके दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित कर रहे हैं। वह नौ राज्यों तक नीबू की बागवानी का प्रशिक्षण देने के लिए जाते हैं। किसान उनकी बागवानी देखने के लिए उनके गांव भी
पहुंचते हैं। उनका कहना है कि अगर किसान नीबू की बागवानी करके पांच लाख रुपये प्रति एकड़ तक लाभ ले सकते हैं। डीह ब्लॉक के कचनावा गांव के निवासी आनंद मिश्रा नीलकमल ग्रुप में मैनेजर थे। उत्तर
प्रदेश, राजस्थान, बिहार में नौकरी की। आनंद का कहना है कि वह गांव आते तो लगता कि गेहूं-धान के अलावा कुछ और खेती हो, जिससे आमदनी बढ़ सके। किसानों और बागवानी विशेषज्ञों से बात की और मन बागवानी
की तरफ बढ़ चला। इसके बाद 2016 में नौकरी छोड़ दी। उस समय आनंद पटना में तैनात थे। उन्होंने नीबू की खेती करने की सोची और इस दिशा में बढ़ चले। नीबू की बागवानी में इतना मन लगा कि अब वह लेमन मैन के
नाम से जाने जाते हैं। वह खुद तो बागवानी कर रहे हैं। दूसरे किसानों को भी इसके लिए प्रेरित कर रहे हैं। सबसे मुफीद है यह बागवान आनंद बताते हैं कि वह दो एकड़ में नीबू की बागवानी कर रहे हैं। वह दो
से पांच लाख रुपये प्रति एकड़ तक की आमदनी कर लेते हैं। नीबू की बागवानी के फायदे बताते हुए कहा कि आम, अमरूद जैसे फलों की खेती करने से बेहतर नीबू की फसल है। नीबू जल्दी खराब नहीं होता है। जबकि
आम-अमरूद पकने के एक-दो दिन बाद खराब होने का खतरा बना रहता है। नीबू सर्दियों में 25 और गर्मियों में 10 दिन तक चल सकता है। तीस साल तक फल देते हैं पेड़ लेमन मैन बताते हैं कि एक एकड़ में दो सौ
पौधे लगते हैं। अगर सही से देखभाल हो तो एक बार पौधे लगाने के बाद 25 से 30 साल तक फल देते हैं। पौधरोपण के चार साल बाद फल मिलने लगते हैं। तीन साल तक उसमें दूसरी फसल कर सकते हैं। उनके पास इस समय
सात प्रजाति के नीबू हैं। आनंद बताते हैं कि दुनिया भर में इस समय 200 अधिक प्रजाति के नीबू हैं। इन राज्यों में जाते हैं प्रशिक्षण देने आनंद के पास उप्र, बिहार, झारखंड, दिल्ली, हरियाणा,
महाराष्ट्र, गुजरात समेत नौ राज्यों के किसान आते हैं। वह भी इन राज्यों में प्रशिक्षण देने के लिए जाते हैं। सरकार की ओर से भी किसान उनकी बागवानी देखने के लिए आते हैं। वह यहां रुककर प्रशिक्षण
लेते हैं। वह भी आगे नीबू की बागवानी के लिए किसानों को प्रेरित करते हैं। ऐसे में यह सिलसिला चलता रहता है।