
कोरोना के चलते रोजगार छिना पर हिम्मत नहीं हारी, शुरू किया अपना व्यवसाय
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शिवम पाण्डेय/बिल्लू माथुर भिंड। कोरोना संक्रमण का सेहत के अलावा आर्थिक गतिविधियों पर बुरा असर पड़ा है। लोगों की नौकरियां जाने, वेतन कम होने से लेकर काम-धंधे चौपट हो गए हैं। खराब माली हालत में
घर चलाने का संकट आ खड़ा हुआ, लेकिन इसके बाद भी कुछ लोगों ने हिम्मत नहीं हारी। अपने हुनर पर उन्हें पूरा भरोसा था, जिसके बल पर खुद का व्यव By NAI DUNIA NEWS NETWORK Edited By: NAI DUNIA NEWS
NETWORK Publish Date: Wed, 24 Mar 2021 10:11:03 PM (IST) Updated Date: Wed, 24 Mar 2021 10:11:03 PM (IST) शिवम पाण्डेय/बिल्लू माथुर भिंड। कोरोना संक्रमण का सेहत के अलावा आर्थिक गतिविधियों पर
बुरा असर पड़ा है। लोगों की नौकरियां जाने, वेतन कम होने से लेकर काम-धंधे चौपट हो गए हैं। खराब माली हालत में घर चलाने का संकट आ खड़ा हुआ, लेकिन इसके बाद भी कुछ लोगों ने हिम्मत नहीं हारी। अपने
हुनर पर उन्हें पूरा भरोसा था, जिसके बल पर खुद का व्यवसाय शुरू कर दिया। इतना ही नहीं अब यह लोग दूसरों को भी घर बैठे रोजगार उपलब्ध करा रहे हैं। घर से शुरू किया काम, 25 महिलाओं को रोजगार भी
दियाः -पीपी फोटो गोहद। गोहद के वार्ड क्रमांक 10 में रहने वाले 37 वर्षीय फूल सिंह पुत्र बैजनाथ राठौर अहमदाबाद में काले मोती की माला बनाने वाली एक फैक्ट्री में काम करते थे। उन्हें हर माह 25
हजार रुपये वेतन मिलता था, मार्च के माह में जब लाकडाउन हुआ तो अहमदाबाद में तीन माह तक घर बैठना पड़ा। साथ ही नौकरी भी चली गई। ऐसे में परिवार का भरण-पोषण करना मुश्किल हो रहा था। इस वजह से वह
अपना परिवार लेकर जून में घर आ गए। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। अगस्त माह में उन्होंने फैक्ट्री में काम करने वाले अपने मित्रों की मदद से गोहद में ही काले मोती की माला बनाने का कार्य शुरू
कर दिया। आज उनके छोटे से कारखाने में 25 महिलाएं मोती की माला बनाने का कार्य कर रही हैं, जिन्हें वह हर दिन 20 रुपये प्रतिमाल के हिसाब से देते हैं, औसतन दिन में महिलाएं 250 से 300 रुपये कमा
लेती हैं। फूल सिंह बताते हैं, जब नौकरी गई थी तो मैं कुछ दिन बहुत परेशान रहा, परिवार के भरण-पोषण करने की मुझ पर जिम्मेदारी थी, लेकिन मैंने हार नहीं मानी और अपना व्यवसाय शुरू कर दिया। अब हर
माह तैयार होने वाली मालाओं को मैं अहमदाबाद लेकर जाता हूं। प्रति माह मुझे 40 से 45 हजार रुपये बच जाते हैं। वेतन नहीं मिला तो उधार लेकर शुरू कर दी स्वयं की दुकानः भिंड। शहर के 28 वर्षीय
कन्हैया पुत्र गिरीश सोनी निवासी झांसी मोहल्ला ने बताया कि लाकडाउन के पहले तक वह पिछले पांच साल से शहर में संचालित एक रेडिमेट की दुकान पर काम कर रहे थे, जिसके बदले में उन्हें हर माह 10 रुपये
वेतन मिलता था। लाकडाउन होने से तीन माह घर बैठना पड़ा। इसके बाद जब दुकान खुली तो दुकान पर दो माह बिना वेतन के काम करना पड़ा। इस स्थिति में घर खर्च चलाना मुश्किल हो रहा था। समझ नहीं आ रहा था कि
क्या करूं। इसके बाद मैंने अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से रुपये उधार लेकर दिसंबर में शहर की कृष्णा टाकीज वाली गली में काफी और पेटीज की दुकान शुरू कर दी। शुरुआत में दुकान जमाने में समस्याओं का
सामना तो करना पड़ा, लेकिन आज मैं अपने पैरों पर खड़ा हूं। लाकडाउन न हुआ होता तो शायद आज भी मैं भी उस दुकान पर काम कर रहा होता। साथ ही अपने व्यवसाय के बारे में शोच भी नहीं पाता। कंपनी बंद हुई
तो शुरू किया रेडिमेट कपड़ों का व्यवसायः भिंड। शहर के झांसी रोड पर रहने वाले 29 वर्षीय अनुराग पुत्र सीएल मिश्रा पिछले चार साल से गुड़गांव में संचालित किंगडम आफ ड्रीम्स कंपनी में काम कर रहे,
लेकिन लाकडाउन में यह कंपनी बंद हो गई। अनुराग ने जून तक गुड़गांव में रहकर कंपनी खुलने का इंतजार किया, लेकिन जब कंपनी शुरू होने की उम्मीद खत्म हो गई तो वह अपना परिवार लेकर भिंड वापस आ गए। इसके
बाद उन्होंने नवंबर माह में अपने घर में ही सांवरिया कलेक्शन के नाम से रेडिमेट कपड़ों की दुकान शुरू कर दी। अनुराग बताते हैं कि वह दिल्ली से कपड़े लेकर आते हैं। उन्होंने बताया कि कोरोना की वजह से
रोजगार तो छिना, लेकिन मुझे घर बैठे एक नई शुरुआत करने का अवसर भी मिला। आज मैं अपने परिवार के साथ रहकर हर माह 25 से 30 हजार रुपये कमा रहा हूं।