
महिला नागा साधु को क्यों कहा जाता है नागिन? जिनका शरीर हो जाता है ठंडप्रुफ
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सांसारिक जीवन से पूरी तरह दूर. ब्रह्मचर्य का पालन और दीक्षा के बाद बदला हुआ नाम मतलब खुद को भूलकर प्रभु के चरणों में समर्पित. खुद का पिंडदान पहले ही कर चुकी होती हैं, इन्हें सिर्फ गेरुए को
धारण करने की अनुमति. इतना सब करने के बाद महिला नागा साधु बनती है. वहीं सभी के मन में आता है कि अगर पुरुष नागा साधुओं की तपस्या इतनी कठिन होती है तो महिला नागा साधुओं के लिए तो यह और भी
मुश्किल भरा सफर रहता होगा. वहीं महिला नागा साधु को नागिन कहा जाता है. जिसके बाद लोगों के दिमाग में आता है कि इनको नागिन क्यों कहा जाता है. आइए आपको इसके पीछे की वजह बताते है. Advertisment
कुंभ में बनता है अलग से शिविर महिला नागा संतों की खूबी होती है कि ये शारीरिक तौर पर भी बड़ी कठोर और मजबूत होती हैं. इनसे पंगा लेना आसान नहीं होता. इधर कुछ वर्षों में महिला साधकों की संख्या
में तेजी से वृद्धि हुई है. जिसमें विदेशी महिला नागा साधु भी हैं. अखाड़े की महिला साधुओं को माई, अवधूतानी अथवा नागिन के नाम से संबोधित किया जाता है. कुंभ मेले में महिला संन्यासियों के लिए माई
बाड़ा नाम से अलग शिविर बनाया जाता है. शरीर हो जाता है ठंडप्रुफ जिस समय कुंभ होता है, उस समय कड़ाके की ठंड पड़ रही होती है. उस ठंड में भी ये महिला नागा साधु केवल एक पतला सूती कपड़ा लपेटे
होती हैं. दरअसल योगसाधना के जरिए वो ठंड पर जीत हासिल कर लेती हैं और इस जरिए अपने शरीर ठंडप्रुफ बना लेती हैं. इसी वजह से वो कड़ाके की ठंड में भी आराम से बाहर घूम लेती हैं और कुंभ में डूबकी
लगाती हैं. नागिन क्यों कहा जाता है दरअसल पुरुष नागा साधुओं को नागा कहते हैं. वो शरीर पर बिल्कुल कपड़े धारण नहीं करते. केवल भस्म लपेटकर रखते हैं. महिला नागा साधुओं को स्त्रीलिंग में नागिन
कहते हैं. इसका अर्थ नकारात्मक तौर पर कतई नहीं होता और ना इसका मतलब सर्प प्रजाति की नागिन के तौर पर होता है. लेकिन ये बात सही है कि जब कोई उन्हें नागिन के तौर पर संबोधित करता है तो लोग चकरा
जाते हैं. RELIGION की ऐसी और खबरें पढ़ने के लिए आप न्यूज़ नेशन के धर्म-कर्म सेक्शन के साथ ऐसे ही जुड़े रहिए. (DISCLAIMER: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं.
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