आरएसएस का संवाद: मोहन भागवत को सुनने पहुंचीं मनीषा कोईराला, भाग्य श्री, रवि किशन, अनू कपूर

आरएसएस का संवाद: मोहन भागवत को सुनने पहुंचीं मनीषा कोईराला, भाग्य श्री, रवि किशन, अनू कपूर


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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की व्‍याख्‍यान माला ‘भविष्य का भारत’ का आयोजन दिल्ली हुआ। दिल्ली में आयोजित इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए कई गणमान्य अतिथियों के साथ ही बड़ी संख्या में फिल्मी


सितारे भी पहुंचे। जो सिने स्टार इस कार्यक्रम में आए उनमें फिल्म स्टार मनीषा कोईराला, ​भोजपुरी फिल्म स्टार रवि किशन, अन्नू कपूर और कई अन्य भी उपस्थित रहे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक


मोहन भागवत ने सोमवार को कहा कि भारतीय समाज विविधताओं से भरा है, किसी भी बात में एक जैसी समानता नहीं है, इसलिये विविधताओं से डरने की बजाए, उसे स्वीकार करना और उसका उत्सव मनाना चाहिए ।


उन्होंने इसके साथ ही स्वतंत्रता आंदोलन में कांग्रेस के योगदान की भी सराहना की। भागवत ने कहा कि कांग्रेस के रूप में देश की स्वतंत्रता के लिये सारे देश में एक आंदोलन खड़ा हुआ, जिसमें अनेक


सर्वस्वत्यागी महापुरूषों की प्रेरणा आज भी लोगों के जीवन को प्रेरित करती है। ‘‘भविष्य का भारत : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दृष्टिकोण’’ विषय पर तीन दिवसीय चर्चा सत्र के पहले दिन सरसंघचालक ने


कहा कि 1857 के बाद देश को स्वतंत्र कराने के लिये अनेक प्रयास हुए जिनको मुख्य रूप से चार धाराओं में रखा जाता है । कांग्रेस के संदर्भ में उन्होंने कहा कि एक धारा का यह मानना था कि अपने देश में


लोगों में राजनीतिक समझदारी कम है। सत्ता किसकी है, इसका महत्व क्या है, लोग कम जानते हैं और इसलिये लोगों को राजनीतिक रूप से जागृत करना चाहिए । भागवत ने कहा, ‘‘ और इसलिये कांग्रेस के रूप में


बड़ा आंदोलन सारे देश में खड़ा हुआ । अनेक सर्वस्वत्यागी महापुरूष इस धारा में पैदा हुए जिनकी प्रेरणा आज भी हमारे जीवन को प्रेरणा देने का काम करती है।’’ उन्होंने कहा कि इस धारा का स्वतंत्रता


प्राप्ति में एक बड़ा योगदान रहा है । सरसंघचालक ने कहा कहा कि देश का जीवन जैसे जैसे आगे बढ़ता है, तो राजनीति तो होगी ही और आज भी चल रही है। सारे देश की एक राजनीतिक धारा नहीं है। अनेक दल है,


पार्टियां हैं । इसके विस्तार में जाए बिना उन्होंने कहा, ‘‘ अब उसकी स्थिति क्या है, मैं कुछ नहीं कहूंगा । आप देख ही रहे हैं । ’’ भागवत ने कहा, ‘‘ हमारे देश में इतने सारे विचार हैं,लेकिन इन


सारे विचारों का प्रस्थान बिंदु एक है। विविधताओं से डरने की बात नहीं है, विविधताओं को स्वीकार करने और उसका उत्सव मनाने की जरूरत है। अपनी परंपरा में समन्वय एक मूल्य है। समन्वय मिलजुल कर रहना


सिखाता है।’’ उन्होंने कहा कि विविधता में एकता का विचार ही मूल बिंदु है और इसलिये अपनी अपनी विविधता को बनाये रखें और दूसरे की विविधता को स्वीकार करें । भागवत ने इसके साथ ही संयम और त्याग के


महत्व को भी रेखांकित किया । सरसंघचालक ने कहा कि संघ की यह पद्धति है कि पूर्ण समाज को जोड़ना है और इसलिये संघ को कोई पराया नहीं, जो आज विरोध करते हैं, वे भी नहीं । संघ केवल यह चिंता करता है कि


उनके विरोध से कोई क्षति नहीं हो । भागवत ने कहा, ‘‘ हम लोग सर्व लोकयुक्त वाले लोग हैं, ‘मुक्त वाले नहीं । सबको जोड़ने का हमारा प्रयास रहता है, इसलिये सबको बुलाने का प्रयास करते हैं । ’’


उन्होंने कहा कि आरएसएस शोषण और स्वार्थ रहित समाज चाहता है। संघ ऐसा समाज चाहता है जिसमें सभी लोग समान हों। समाज में कोई भेदभाव न हो। युवकों के चरित्र निर्माण से समाज का आचरण बदलेगा। व्यक्ति


और व्यवस्था दोनों में बदलाव जरूरी है। एक के बदलाव से परिवर्तन नहीं होगा।