Navratri 2019 day 5, maa skandmata puja vidhi: नवरात्रि के पांचवें दिन कैसे करें देवी की पूजा, जानिए आरती, मंत्र और विधि

Navratri 2019 day 5, maa skandmata puja vidhi: नवरात्रि के पांचवें दिन कैसे करें देवी की पूजा, जानिए आरती, मंत्र और विधि


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चैत्र नवरात्रि के पांचवें दिन देवी दुर्गा की पांचवीं स्वरूप स्कंदमाता की पूजा की जाती है। इस चैत्र नवरात्रि स्कंदमाता की पूजा 10 अप्रैल, 2019, रविवार को की जाएगी। मार्केण्डेय पुराण में देवी


स्कंदमाता के स्वरूप का वर्णन मिलता है। जिसके अनुसार सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी की उपासना से आलौकिक तेज और कांति की प्राप्ति होती है। वात्सल्य की देवी मां कमल के आसान पर विराजमान होकर अपनी


चार भुजाओं में से एक में भगवान स्कन्द को गोद लीं हैं। दूसरी और चौथी भुजा में कमल का फूल, तीसरी भुजा से आशीर्वाद दे रही हैं। इनको इनके पुत्र के नाम से पुकारा जाता है। स्कंद कुमार कार्तिकेय


की माता के कारण इन्हें स्कंदमाता नाम से पुकारा जाता है। बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं। नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। इनका वर्ण एकदम शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती


हैं। इसीलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। सिंह इनका वाहन है। नवरात्रि में पांचवें दिन इस देवी की पूजा-अर्चना की जाती है। कहते हैं कि इनकी कृपा से मूढ़ भी ज्ञानी हो जाता है। आगे जानते हैं


स्कंदमाता की पूजा-विधि, मंत्र और आरती। पूजा-विधि- स्कंदमाता की पूजा के लिए सबसे पहले स्थान शुद्ध कर आसन लगाएं। देवी की मूर्ति या चित्र स्थापित कर ध्यान करें। फिर माता की चौकी सजाकर पूरे


विधि-विधान से पूजा आरंभ करें या करवाएं। फिर पूजन के बाद देवी स्कंदमाता की आरती करें। मंत्र- 1 सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया। शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥ मंत्र- 2 या देवी


सर्वभू‍तेषु माँ स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। आरती जय तेरी हो अस्कंधमाता। पांचवा नाम तुम्हारा आता॥ सबके मन की जाननहारी। जगजननी सबकी महतारी॥ तेरी ज्योत


जलाता रहू मै। हरदम तुम्हे ध्याता रहू मै॥ कई नामो से तुझे पुकारा। मुझे एक है तेरा सहारा॥ कही पहाड़ो पर है डेरा। कई शेहरो मै तेरा बसेरा॥ हर मंदिर मै तेरे नजारे। गुण गाये तेरे भगत प्यारे॥ भगति


अपनी मुझे दिला दो। शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो॥ इन्दर आदी देवता मिल सारे। करे पुकार तुम्हारे द्वारे॥ दुष्टदत्यज बचढ़कर आये। तुम ही खंडा हाथ उठाये॥ दासो को सदा बचाने आई। ‘भक्त’ की आस पुजाने आई॥