सत्संगति से होता है मानव जीवन सार्थक : भृगुभूषण ओझा

सत्संगति से होता है मानव जीवन सार्थक : भृगुभूषण ओझा


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GHAZIPUR NEWS - माता कैकेयी श्रीराम से अतिसय प्रेम करती थी, लेकिन मंथरा के साथ पल भर में किया गया कुसंग माता कैकेयी के हृदय को प्रभु श्रीराम प्रेम से विचलित कर माता... Newswrap हिन्दुस्तान,


गाजीपुरThu, 4 March 2021 10:40 PM Share Follow Us on __ नगसर (गाजीपुर)। हिन्दुस्तान संवाद स्थानीय क्षेत्र के विशुनपुरा में चल रहे भागवत कथा के दूसरे दिन गुरुवार को कथा व्यास भृगुभूषण ओझा ने


जीवन जीने की व्यवस्था को बताते हुए कहा कि जीवन में सत्संग महत्वपूर्ण है, लेकिन उससें भी ज्यादा महत्वपूर्ण है कुसंगती से बचना। क्योंकि अच्छे लोगों के साथ रहकर हम कितने दिन में अच्छे बन


पाएंगे, यह नहीं कहा जा सकता, लेकिन बुरी संगत करने से कम समय में ही जीवन में बुराइयां आ जाती हैं। बताया कि माता कैकेयी श्रीराम से अतिसय प्रेम करती थी, लेकिन मंथरा के साथ पल भर में किया गया


कुसंग माता कैकेयी के हृदय को प्रभु श्रीराम प्रेम से विचलित कर माता कैकेयी को अपयश का पात्र बना दिया। कहा भी गया है कि "संगत से गुण होत है, संगत से गुण जात।" इसीलिए इस मानव जीवन की


सार्थकता तभी सम्भव है, जब हम अधिक से अधिक सत्संग करें और बुराइयों से बचे। ------------------ वृक्ष, नदी, पर्वत, हवा यावत प्रकृति के अंग मलसा। राधा-माधव ट्रस्ट सब्बलपुर में आयोजित देवी भागवत


पुराण कथा में भागवताचार्य पं. चंद्रेश ने कहा कि सनातन धर्म, संस्कृति एवं परम्परा में प्रकृति के संरक्षण को वरियता प्रदान किया गया है और संरक्षण के उपरांत प्रकृतिप्रदत्त जिवनोपयोगी वस्तुओं के


प्रयोग करने की व्यवस्था रही है। वृक्ष, नदी, पर्वत, हवा यावत प्रकृति के अंग हैं। इसके संरक्षण के लिए उनको पूजनीय का दर्जा सनातन संस्कृति एवं सभ्यता में प्रदान किया गया है। जन्म, मृत्यु से


लेकर अन्य अनेक संस्कार सनातन संस्कृति में अच्छी परम्परा के तौर पर बनाये व चलाए गए हैं। उनके साथ वृक्ष, जलाशय और पहाड़ को जोड़ दिया गया, ताकि इसी बहाने से जीवनदायक वृक्ष, नदी, तलाब, भूमि,


पर्वत आदि का संरक्षण होता रहे।